कमलेश
धौरहरा खीरी। संत तुलसीदास की कर्मस्थली रामवाटिका धाम मे चल रहे संत श्री तुलसीदास महोत्सव एवं श्री रामनाम महायज्ञ एवं श्री कृष्ण रासलीला मे चौथे दिन बुधवार को रामवाटिका धाम मे जन कल्याण के लिए यज्ञ में आहुतियां डाली गई। और दिन मे राम जन्म, विश्वामित्र आगमन लीला का मंचन किया गया। वही मंगलवार की रात्रि मे जालंधर वध लीला का मंचन किया गया। एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था। दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ जालंधर महाराक्षस था। वह सभी देवताओं को सताने लगा तब महादेव को जलंधर से युद्घ करना पड़ा। लेकिन वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर निष्फल कर देता था।अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर समझकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया। विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा जो तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं। इस लीला का मंचन देखकर श्रोता भाव विभोर हो गए। इस दौरान प्रबंधक रामकुमार शर्मा, भगवती प्रसाद शुक्ला,अशोक शुक्ला, अचल अवस्थी आदि समिति के पदाधिकारी मौजूद रहे।

