कमलेश
खमरिया - खीरी। जनपद लखीमपुर खीरी में ईसानगर के नरगड़ा गांव निवासी विश्वम्भर दयाल मिश्रा शुक्रवार को 42वीं बार दूल्हा बने। गाजे-बाजे के साथ बारात लेकर दुल्हन के दरवाजे पर पहुंचे। बारात का धूमधाम से स्वागत-सत्कार हुआ, फेरे की रस्में हुईं, पर हर साल की तरह 42वीं बार दूल्हा बने विश्वम्भर की बारात बिना दुल्हन के बैरंग वापस हुई। इससे पहले 35 बार विश्वम्भर के बड़े भाई श्यामबिहारी की बारात भी बिना दुल्हन के वापस लौट चुकी थी।
शुक्रवार को होली का दिन था ,रंगों से सराबोर बारातियों का एक जत्था दूल्हे के साथ गांव के बीच से होकर धूमधाम से निकला। बारात में करीब-करीब पूरा गांव शामिल था। गांव नरगड़ा निवासी अशोक अवस्थी के दरवाजे पर बारात पहुंची। जहां पर यथोचित सत्कार बारातियों का किया गया।
परम्परानुसार बारातियों को जलपान कराकर जनवासे में ठहरा दिया गया। इधर अशोक अवस्थी के परिजन बारात में शामिल लोगों के पांव पखार रहे थे। उधर घर में महिलाएं मंगलगीत गा रही थीं। द्वारपूजन के बाद विवाह की रस्में निभाई गईं। बारात और दूल्हे के साथ वे सभी रस्में निभाई जाती हैं जो आमतौर पर शादियों में होती हैं। लेकिन इतना सब करने के बावजूद दूल्हे को दुल्हन नहीं मिल पाती है और बारात को बैरंग लौटना पड़ता है।
हम बात कर रहे हैं होली के दिन ईसानगर के मजरा नरगड़ा में निकाली जाने वाली बारात की। इस बारात की खासियत यह है कि इसमें एक ही परिवार के सदस्य सैकड़ों वर्षों से दूल्हा बनते आए हैं। होली के दिन पूरा गांव दूल्हे के साथ नाचते-गाते रंग, अबीर-गुलाल से सराबोर होकर दूल्हे के साथ बारात लेकर पहुंचते हैं।
गांव निवासी बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। होली के दिन बारात लेकर पूरा गांव जाता है। सारी रस्में शादी-बारात वाली ही होती हैं। पुरानी परम्परा के मुताबिक आज भी हम लोग भी इस प्रथा को निभा रहे हैं। यह भी परम्परा है कि बारात को बिना दुल्हन के विदा किया जाता है।
होली के दिन इस पारंपरिक श्वांग में गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा 42वीं बार दूल्हा बने। दरअसल विश्वम्भर की ससुराल गांव में ही है। होली के पहले उनकी पत्नी मोहिनी को कुछ दिन पहले मायके बुला लिया जाता है। शादी के स्वांग के बाद जब बारात विदा होकर आ जाती है। तब होलाष्टक खत्म होने के बाद मोहिनी को ससुराल भेज दिया जाता है। विश्वम्भर से पहले उनके बड़े भाई श्यामबिहारी भी होली के दिन इसी तरह दूल्हा बनते थे। 35 वर्षों तक श्यामबिहारी दूल्हा बनकर भैंसा पर सवार होकर बड़ी धूमधाम से बारात लेकर निकलते थे।
42वीं बार दूल्हा बने विशंभर मिश्रा हर बार की तरह अबकी बार बारात लेकर नहीं गए। इस बार विशंभर मिश्रा टैक्टर ट्राली को छोड़ पीलीभीत से शादी में शामिल होने आए गांव निवासी राकेश मिश्र की क्रेटा कार पर सवार होकर बारात लेकर गए, लेकिन 42वीं बार भी उनको बिना दुल्हन के ही वापस लौटना पड़ा।
यह अनोखी शादी देखने और बारात में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। सैकड़ों सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी लोक संस्कृतियों की यादें समेटे हुए है। भले ही आज की शादियों में बड़ा बदलाव आ गया हो पर होली के दिन ईसानगर के नरगड़ा गांव की इस अनोखी शादी में बारात के स्वागत, ज्योनार के समय गारी और सोहर,सरिया और मंगलगीतों की परम्पराएं आज भी जीवंत हैं। दूर दराज से बड़ी संख्या में लोग इस शादी को देखने और धूम धड़ाके के साथ शामिल होने के लिए आते हैं।

